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Brihaspati Chalisa (श्री बृहस्पति देव चालीसा)

|| दोहा ||

गाउे नित मंगलाचरण, गणपति मेरे नाथ।
करो कृपा माँ शारदा, जीव रहें मेरे साथ।

|| चौपाई ||

वीर देव भक्‍तन हितकारी। सुर नर मुनिजन के उद्धारी।
वाचस्पति सुर गुरू पुरोहित। कमलासन बृहस्पति विराजित।

स्वर्ण दंड वर मुद्रा धारी। पात्र माल शोभित भुज चारी।
है स्वर्णिम आवास तुम्हारा। पीत वदन देवों में न्यारा।

स्वर्णारथ प्रभु अति ही सुखकर। पाण्डुर वर्ण अश्व चले जुतकर।
स्वर्ण मुकुट पीताम्बर धारी। अंगिरा नन्दन गगन विहारी।

अज अगम्य अविनाशी स्वामी। अनन्त वरिष्ठ सर्वज्ञ नामी।
श्रीमत्‌ धर्म रूप धन दाता। शरणागत सर्वापद्‌ त्राता।

पुष्य नाथ ब्रह्म विद्या विशारद। गुण बरने सुर गण मुनि नारद।
कठिन तप प्रभास में कीन्हा। शंकर प्रसन्‍न हो वर दीन्हा।

देव गुरू ग्रह पति कहाओ। निर्मल मति वाचस्पति पाओ।
असुर बने सुर यज्ञ विनाशक। करें सुरक्षित मन्त्र से सुर मख।

बनकर देवों के उपकारी। दैत्य विनाशे विघ्न निवारी।
बृहस्पति धनु मीन के नायक। लोक द्विज नय बुद्धि प्रदायक।

मावस वीर वार ब्रत धारे। आश्रय दें सर्व पाप निवारें।
पीताम्बर हल्दी पीला अन्न। शक्कर मधु पुखराज भू-लवण।

पुस्तक स्वर्ण अश्व दान कर। ददेवें जीव अनेक सुखद वर।
विद्या सिन्धु स्वयं कहलाते। भक्तों को सन्मार्ग चलाते।

इन्द्र किया अपमान अकारण। विश्वरूपा गुरू किये धारण।
बढ़ा कष्ट सब राज गँवाया। दानव ध्वज स्वर्ग लहराया।

क्षमा माँग फिर स्तुति कीन्ही। विपदा सकल जीव हर लीन्ही।
बढ़ा देवों में मान तुम्हारा। कीरति गावें सकल संसारा।

दोष बिसार शरण में लीजै। उर आनन्द प्रभु भर दीजै।
सदगुरू तेरी प्रबल माया। तेरा पारा ना कोई पाया।

सब तीर्थ गुरू चरण समाये। समझे विरला बहु सुख पाये।
अमृत वारिद सदृश वाणी। हिरदय धार भए ब्रह्ज्ञानी।

शोभा मुख से बरनि न जाईं। देवें भक्ति जीव मनचाही।
जो अनाथ ना कोइ सहाई। लख चोरासी पार कराहीं।

प्रथम गुरू का पूजन कीजे। गुरू चरणामृत रुच-रुच पीजै।
मृग तृष्णा गुरू दरशन राखी। मिले मुक्ति हो सब जग साखी।

चरणन रज सतूगुरु सिर धारे। पा गए दास पदारथ सारे।
जग के कार विहारण दोड़े। गुरू मोह के बन्धन तोड़े।

पारस माणिक नीलम रत्ना। गुरूवर सम्मुख व्यर्थ कल्पना।
कर निष्काम भक्ति गुरुवर की। सुन्दर छवि धारे सुखकर की।

गुरू पताका जो फहारायें। मन क्रम वचन ध्यान से ध्यायें।
काल रूप यम नहीं सतावें। निश्चय गुरुवर पिंड छुड़ावें।

भूत पिशाच्र निकट ना आवें। रोगी रोग मुक्त हो जावें।
संतती हीन संस्तुति गावें। मंगल होय पुत्र धन पावें।

“मनु! गुण गाहिरदय हर्षावे। स्नेह जीव चरणों में लावे।
जीव चालीसा पढ़े पढ़ावे। पूर्ण शांति को पल में पावें।

|| दोहा ||

मात पिता के संग मनु, गुरू चरण में लीन।
किरपा सब पर कीजिये, जान जगत में दीन।

|| इति संपूर्णंम् ||



श्री बृहस्पति देव चालीसा: पूजा विधि, लाभ, मंत्र, शुभ अवसर और अर्थ


श्री बृहस्पति देव चालीसा बृहस्पति ग्रह की कृपा प्राप्त करने और जीवन में शुभता लाने का एक विशेष स्तोत्र है। बृहस्पति देव ज्ञान, बुद्धि और सुख-समृद्धि के दाता माने जाते हैं। उनकी पूजा से जीवन में सफलता, मानसिक शांति और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।


पूजा विधि


पूजा का समय:
- बृहस्पतिवार का दिन बृहस्पति देव की पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है।
- सूर्योदय के समय पूजा करना विशेष फलदायक होता है।

पूजा सामग्री:

पूजा प्रक्रिया:
1. प्रातः स्नान कर स्वच्छ पीले वस्त्र पहनें।
2. एक स्वच्छ स्थान पर बृहस्पति देव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. दीपक जलाकर हल्दी और चने की दाल अर्पित करें।
4. श्री बृहस्पति चालीसा का पाठ करें।
5. बृहस्पति मंत्र "ॐ बृं बृहस्पतये नमः" का जाप 108 बार करें।
6. पूजा समाप्ति पर प्रसाद वितरित करें और गरीबों को दान दें।



लाभ


1. ज्ञान और बुद्धि: बृहस्पति देव की कृपा से व्यक्ति को विद्या और बुद्धि प्राप्त होती है।
2. वैवाहिक सुख: बृहस्पति ग्रह की शांति वैवाहिक जीवन को सुखद बनाती है।
3. धन और समृद्धि: पूजा करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
4. रोग निवारण: बृहस्पति देव की कृपा से मानसिक और शारीरिक रोग दूर होते हैं।
5. संतान सुख: संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले भक्तों के लिए यह पूजा अत्यंत फलदायी है।
6. ग्रह दोष निवारण: बृहस्पति दोष और कुंडली के अन्य ग्रह दोष शांत होते हैं।



मंत्र


बृहस्पति बीज मंत्र:

"ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः।"


बृहस्पति शांति मंत्र:
"ॐ बृं बृहस्पतये नमः।"


अधिदेवता मंत्र:
"ॐ वाचस्पतये नमः।"



शुभ अवसर


1. बृहस्पतिवार: इस दिन विशेष रूप से बृहस्पति देव की पूजा करें।
2. पूर्णिमा: पूर्णिमा के दिन बृहस्पति स्तोत्र और चालीसा का पाठ करें।
3. शुभ कार्य: विवाह, विद्या आरंभ, और अन्य शुभ कार्यों से पूर्व बृहस्पति की पूजा करें।
4. गुरु ग्रह दोष निवारण: बृहस्पति ग्रह की शांति के लिए शुभ तिथियों पर पूजा करें।



अर्थ


श्री बृहस्पति चालीसा का अर्थ || दोहा ||
गाउे नित मंगलाचरण, गणपति मेरे नाथ।
करो कृपा माँ शारदा, जीव रहें मेरे साथ।

अर्थ: इस दोहे में बृहस्पति देव से विनती की गई है कि वे बुद्धि और विद्या की देवी माँ सरस्वती और गणपति जी की कृपा से हमारे जीवन को सुखद और मंगलमय बनाएँ।

|| चौपाई ||
वीर देव भक्‍तन हितकारी। सुर नर मुनिजन के उद्धारी।
वाचस्पति सुर गुरू पुरोहित। कमलासन बृहस्पति विराजित।

अर्थ: बृहस्पति देव, भक्तों के कल्याणकारी हैं। वे देवताओं, मनुष्यों और ऋषि-मुनियों के उद्धारकर्ता हैं। उन्हें "वाचस्पति" और "सुर गुरु" कहा जाता है, और वे कमल के आसन पर विराजमान हैं।


स्वर्ण दंड वर मुद्रा धारी। पात्र माल शोभित भुज चारी।
है स्वर्णिम आवास तुम्हारा। पीत वदन देवों में न्यारा।

अर्थ: बृहस्पति देव स्वर्णिम दंड और आभूषण धारण करते हैं। उनकी चार भुजाएँ दिव्य पात्रों और मालाओं से सुसज्जित हैं। उनका वास स्वर्णिम प्रकाश से भरा हुआ है, और उनका मुख पीतवर्ण (पीला) है, जो देवताओं में अनोखा है।



स्वर्णारथ प्रभु अति ही सुखकर। पाण्डुर वर्ण अश्व चले जुतकर।
स्वर्ण मुकुट पीताम्बर धारी। अंगिरा नन्दन गगन विहारी।

अर्थ:

बृहस्पति देव स्वर्णिम रथ पर सवार होते हैं, जिसे सफेद रंग के घोड़े खींचते हैं। वे स्वर्ण मुकुट और पीले वस्त्र पहनते हैं। वे महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं और आकाश में विचरण करते हैं।



अज अगम्य अविनाशी स्वामी। अनन्त वरिष्ठ सर्वज्ञ नामी।
श्रीमत्‌ धर्म रूप धन दाता। शरणागत सर्वापद्‌ त्राता।

अर्थ: बृहस्पति देव अजन्मा, अज्ञेय और अविनाशी हैं। वे अनंत, सर्वज्ञ, और धर्म के प्रतीक हैं। वे धन और समृद्धि के दाता हैं और शरण में आए हुए व्यक्तियों की सभी विपत्तियों को दूर करते हैं।



पुष्य नाथ ब्रह्म विद्या विशारद। गुण बरने सुर गण मुनि नारद।
कठिन तप प्रभास में कीन्हा। शंकर प्रसन्‍न हो वर दीन्हा।

अर्थ: बृहस्पति देव पुष्य नक्षत्र के अधिपति और ब्रह्म विद्या के ज्ञाता हैं। उनके गुणों की प्रशंसा देवता, ऋषि और नारद मुनि करते हैं। उन्होंने कठिन तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे वरदान प्राप्त किया।



देव गुरू ग्रह पति कहाओ। निर्मल मति वाचस्पति पाओ।
असुर बने सुर यज्ञ विनाशक। करें सुरक्षित मन्त्र से सुर मख।

अर्थ: बृहस्पति देव को देवताओं के गुरु और ग्रहों के स्वामी के रूप में जाना जाता है। उनकी बुद्धि निर्मल है। उन्होंने यज्ञों को सुरक्षित रखने के लिए मंत्रों का उपयोग करके असुरों को पराजित किया।



बनकर देवों के उपकारी। दैत्य विनाशे विघ्न निवारी।
बृहस्पति धनु मीन के नायक। लोक द्विज नय बुद्धि प्रदायक।

अर्थ: बृहस्पति देव देवताओं के हितैषी और दैत्यों के विनाशक हैं। वे धनु और मीन राशियों के स्वामी हैं और लोगों को ज्ञान और बुद्धि प्रदान करते हैं।



मावस वीर वार ब्रत धारे। आश्रय दें सर्व पाप निवारें।
पीताम्बर हल्दी पीला अन्न। शक्कर मधु पुखराज भू-लवण।

अर्थ: बृहस्पतिवार का व्रत करने से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। पीले वस्त्र, हल्दी, पीला अन्न, शक्कर, मधु, और पुखराज का दान करने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं।



पुस्तक स्वर्ण अश्व दान कर। ददेवें जीव अनेक सुखद वर।
विद्या सिन्धु स्वयं कहलाते। भक्तों को सन्मार्ग चलाते।

अर्थ: बृहस्पति देव पुस्तक, स्वर्ण, और घोड़े का दान स्वीकार कर अपने भक्तों को सुखद आशीर्वाद देते हैं। वे विद्या के महासागर हैं और भक्तों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।



इन्द्र किया अपमान अकारण। विश्वरूपा गुरू किये धारण।
बढ़ा कष्ट सब राज गँवाया। दानव ध्वज स्वर्ग लहराया।

अर्थ: इंद्र ने बिना कारण बृहस्पति देव का अपमान किया, जिससे उन्होंने दैत्यों को समर्थन दिया। इसके परिणामस्वरूप इंद्र ने अपने सभी अधिकार और राज्य खो दिए।



क्षमा माँग फिर स्तुति कीन्ही। विपदा सकल जीव हर लीन्ही।
बढ़ा देवों में मान तुम्हारा। कीरति गावें सकल संसारा।

अर्थ: इंद्र ने बृहस्पति देव से क्षमा माँगी और उनकी स्तुति की। इससे सभी विपत्तियाँ दूर हो गईं और देवताओं में बृहस्पति का मान बढ़ गया। उनकी कीर्ति पूरे संसार में गाई जाती है।



दोष बिसार शरण में लीजै। उर आनन्द प्रभु भर दीजै।
सदगुरू तेरी प्रबल माया। तेरा पारा ना कोई पाया।

अर्थ: बृहस्पति देव से प्रार्थना है कि हमारे सभी दोषों को भुलाकर हमें अपनी शरण में लें और हमारे हृदय को आनंद से भर दें। उनकी माया इतनी प्रबल है कि उसका कोई मोल नहीं है।



सब तीर्थ गुरू चरण समाये। समझे विरला बहु सुख पाये।
अमृत वारिद सदृश वाणी। हिरदय धार भए ब्रह्ज्ञानी।

अर्थ: सभी तीर्थों का सार गुरु के चरणों में समाया हुआ है। जो इसे समझता है, वही सच्चा सुख पाता है। उनकी वाणी अमृत समान है, और जो इसे हृदय में धारण करता है, वह ब्रह्मज्ञानी हो जाता है।



शोभा मुख से बरनि न जाईं। देवें भक्ति जीव मनचाही।
जो अनाथ ना कोइ सहाई। लख चोरासी पार कराहीं।

अर्थ: बृहस्पति देव की शोभा का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। वे अपने भक्तों को मनचाही भक्ति प्रदान करते हैं। जो अनाथ और सहारा विहीन हैं, उन्हें वे 84 लाख योनियों के चक्र से पार कराते हैं।



प्रथम गुरू का पूजन कीजे। गुरू चरणामृत रुच-रुच पीजै।
मृग तृष्णा गुरू दरशन राखी। मिले मुक्ति हो सब जग साखी।

अर्थ: सबसे पहले गुरु का पूजन करें और उनके चरणामृत को श्रद्धा से ग्रहण करें। गुरु का दर्शन मृग तृष्णा को समाप्त करता है और मुक्ति प्राप्त कराता है, जिसकी गवाही सारा संसार देता है।



चरणन रज सतगुरु सिर धारे। पा गए दास पदारथ सारे।
जग के कार विहारण दोड़े। गुरू मोह के बन्धन तोड़े।

अर्थ: गुरु के चरणों की रज को सिर पर धारण करने से भक्त सभी इच्छित वस्तुएँ प्राप्त कर लेता है। गुरु मोह के बंधनों को तोड़ते हैं और संसार के कार्यों को साधते हैं।



पारस माणिक नीलम रत्ना। गुरूवर सम्मुख व्यर्थ कल्पना।
कर निष्काम भक्ति गुरुवर की। सुन्दर छवि धारे सुखकर की।

अर्थ: पारस, माणिक, नीलम और अन्य रत्न भी गुरु के सामने व्यर्थ हैं। गुरु की निष्काम भक्ति करें और उनकी सुंदर छवि को ध्यान में रखकर जीवन को सुखमय बनाएं।



गुरू पताका जो फहारायें। मन क्रम वचन ध्यान से ध्यायें।
काल रूप यम नहीं सतावें। निश्चय गुरुवर पिंड छुड़ावें।

अर्थ: जो लोग गुरु की पताका फहराते हैं और मन, वचन और कर्म से गुरु का ध्यान करते हैं, उन्हें काल और यमराज परेशान नहीं करते। निश्चित रूप से गुरु उनके पिंड को मुक्त कर देते हैं।



भूत पिशाच्र निकट ना आवें। रोगी रोग मुक्त हो जावें।
संतती हीन संस्तुति गावें। मंगल होय पुत्र धन पावें।

अर्थ: गुरु की कृपा से भूत-पिशाच पास नहीं आते और रोगी रोग मुक्त हो जाते हैं। जो संतानहीन हैं, वे गुरु की स्तुति करते हैं और संतान, धन और मंगल लाभ प्राप्त करते हैं।



“मनु! गुण गाहिरदय हर्षावे। स्नेह जीव चरणों में लावे।
जीव चालीसा पढ़े पढ़ावे। पूर्ण शांति को पल में पावें।

अर्थ: बृहस्पति देव के गुण हृदय को आनंदित करते हैं। उनकी चरणों की भक्ति सभी प्रकार के कष्टों को दूर करती है। जो यह चालीसा पढ़ते हैं और सुनते हैं, वे पल भर में शांति प्राप्त करते हैं।



|| दोहा ||
मात पिता के संग मनु, गुरू चरण में लीन।
किरपा सब पर कीजिये, जान जगत में दीन।

अर्थ: गुरु चरणों की भक्ति के साथ माता-पिता की सेवा भी करें। गुरु की कृपा से सभी पर दया हो, और वे इस संसार में दीन जनों की रक्षा करें।



निष्कर्ष:

बृहस्पति चालीसा का पाठ जीवन में ज्ञान, भक्ति और शांति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह चालीसा सभी प्रकार के दुखों, बाधाओं और दोषों को दूर करती है और जीवन को आनंद और समृद्धि से भर देती है।




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