Shri Bhairav Chalisa
॥ दोहा ॥श्री भैरव सङ्कट हरन,
मंगल करन कृपालु।
करहु दया जि दास पे,
निशिदिन दीनदयालु॥
॥ चौपाई ॥
जय डमरूधर नयन विशाला।
श्याम वर्ण, वपु महा कराला॥
जय त्रिशूलधर जय डमरूधर।
काशी कोतवाल, संकटहर॥
जय गिरिजासुत परमकृपाला।
संकटहरण हरहु भ्रमजाला॥
जयति बटुक भैरव भयहारी।
जयति काल भैरव बलधारी॥
अष्टरूप तुम्हरे सब गायें।
सकल एक ते एक सिवाये॥
शिवस्वरूप शिव के अनुगामी।
गणाधीश तुम सबके स्वामी॥
जटाजूट पर मुकुट सुहावै।
भालचन्द्र अति शोभा पावै॥
कटि करधनी घुँघरू बाजै।
दर्शन करत सकल भय भाजै॥
कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर।
मोरपंख को चंवर मनोहर॥
खप्पर खड्ग लिये बलवाना।
रूप चतुर्भुज नाथ बखाना॥
वाहन श्वान सदा सुखरासी।
तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी॥
जय जय जय भैरव भय भंजन।जय कृपालु भक्तन मनरंजन॥
नयन विशाल लाल अति भारी।
रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी॥
बं बं बं बोलत दिनराती।
शिव कहँ भजहु असुर आराती॥
एकरूप तुम शम्भु कहाये।
दूजे भैरव रूप बनाये॥
सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी।
सब जग के तुम अन्तर्यामी॥
रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा।श्
यामवर्ण कहुं होई प्रचारा॥
श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी।
तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी॥
तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं।
सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं॥
व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी।प्
रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी॥
चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा।
निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा॥
क्रोधवत्स भूतेश कालधर।
चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर॥
अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे।
जयत सदा मेटत दुःख भारे॥
चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा।क्
रोधवान तुम अति रणरंगा॥
भूतनाथ तुम परम पुनीता।
तुम भविष्य तुम अहहू अतीता॥
वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा।
कालजयी तुम परम अनूपा॥
ऐलादी को संकट टार्यो।
साद भक्त को कारज सारयो॥
कालीपुत्र कहावहु नाथा।
तव चरणन नावहुं नित माथा॥
श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु।
दीन जानि मोहि पार उतारहु॥
भवसागर बूढत दिनराती।
होहु कृपालु दुष्ट आराती॥
सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै।
मोहिं भगति अपनी अब दीजै॥
करहुँ सदा भैरव की सेवा।
तुम समान दूजो को देवा॥
अश्वनाथ तुम परम मनोहर।
दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर॥
तम्हरो दास जहाँ जो होई।
ताकहँ संकट परै न कोई॥
हरहु नाथ तुम जन की पीरा।
तुम समान प्रभु को बलवीरा॥
सब अपराध क्षमा करि दीजै।
दीन जानि आपुन मोहिं कीजै॥
जो यह पाठ करे चालीसा।
तापै कृपा करहु जगदीशा॥
॥ दोहा ॥
जय भैरव जय भूतपति,
जय जय जय सुखकंद।
करहु कृपा नित दास पे,
देहु सदा आनन्द॥
|| इति संपूर्णंम् ||
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श्री भैरव चालीसा: पूजा विधि, लाभ, मंत्र, शुभ अवसर और अर्थ
पूजा विधि
1. पूजा का समय:
- रात्रि काल में भगवान भैरव की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।
- कालाष्टमी, चतुर्दशी, और रविवार के दिन उनकी उपासना करना अत्यंत शुभ है।
2. आवश्यक सामग्री:
- भगवान भैरव की प्रतिमा या चित्र।
- काले तिल, सरसों का तेल, अगरबत्ती, दीपक।
- नींबू, नारियल, काले वस्त्र, और मिष्ठान्न का भोग।
3. पूजा की प्रक्रिया:
- पूजा स्थल को शुद्ध करें और भगवान भैरव की मूर्ति स्थापित करें।
- दीपक जलाएं और अगरबत्ती अर्पित करें।
- "श्री भैरव चालीसा" का विधिपूर्वक पाठ करें।
- अंत में भगवान को भोग लगाएं और प्रसाद वितरित करें।
लाभ
1. संकट निवारण: भैरव चालीसा का पाठ करने से जीवन के सभी संकट और बाधाएं समाप्त होती हैं।
2. भय से मुक्ति: यह पाठ भय, शत्रु, और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
3. आध्यात्मिक उन्नति: भगवान भैरव की कृपा से ध्यान और साधना में वृद्धि होती है।
4. आर्थिक समृद्धि: चालीसा का नियमित पाठ धन-धान्य और सफलता प्रदान करता है।
5. स्वास्थ्य लाभ: भगवान की उपासना से रोग और मानसिक पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
मंत्र
1. ध्यान मंत्र:
"ॐ कालभैरवाय नमः।"
2. स्तुति मंत्र:
"ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नमः।"
शुभ अवसर
1. कालाष्टमी: कालाष्टमी पर भगवान भैरव की पूजा करना अत्यधिक फलदायी है।
2. चतुर्दशी: प्रत्येक माह की चतुर्दशी को भैरव चालीसा का पाठ करना शुभ होता है।
3. संकट के समय: किसी भी प्रकार की समस्या या संकट के समय भैरव चालीसा का पाठ करना लाभकारी है।
4. उन्नति और सफलता: करियर या व्यवसाय में सफलता के लिए यह पाठ अत्यंत लाभकारी है।
श्री भैरव चालीसा: अर्थ
श्री भैरव चालीसा में भगवान भैरव के स्वरूप, शक्ति और उनकी कृपा का अद्भुत वर्णन है। उनके तेजस्वी रूप में श्याम वर्ण, विशाल नेत्र, और मुकुटयुक्त जटाजूट उनकी दिव्यता और शक्ति का प्रतीक हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, डमरू, खप्पर, और खड्ग जैसे अस्त्र हैं, जो यह दर्शाते हैं कि वे हर संकट का नाश करने में सक्षम हैं। भगवान भैरव को "काशी कोतवाल" के रूप में जाना जाता है, जो काशी नगरी की रक्षा और शांति सुनिश्चित करते हैं। उनकी महिमा तीनों कालों – भूत, वर्तमान, और भविष्य – में अनंत है। उनके भक्त उन्हें सर्वशक्तिमान और कृपालु देवता मानते हैं, जो सभी प्रकार के भय और संकटों को हरने में सक्षम हैं। चालीसा में भगवान के वाहन श्वान का उल्लेख है, जो उनकी निडरता और सतर्कता का प्रतीक है। उनके तेजस्वी स्वरूप को देखकर असुर और नकारात्मक शक्तियां भाग जाती हैं। भक्तों की समस्याओं को हल करने और उनकी इच्छाओं को पूर्ण करने में उनकी कृपा अमोघ है। भैरव भगवान के तीन रूप – श्वेत, रक्त और श्याम – उनके विविध गुणों और शक्तियों का परिचय देते हैं। उनके भजन और चालीसा का पाठ करने से भक्तों को मानसिक शांति, आध्यात्मिक विकास और जीवन में स्थिरता प्राप्त होती है। उनकी कृपा से जीवन में हर प्रकार की बाधा दूर होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
निष्कर्ष
श्री भैरव चालीसा भगवान भैरव की महिमा का सजीव चित्रण है। उनकी पूजा और चालीसा का नियमित पाठ भक्तों को संकट, भय, और शत्रुओं से रक्षा प्रदान करता है। यह न केवल जीवन में सुख-शांति लाता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और सफलता का भी मार्ग प्रशस्त करता है। विशेष शुभ अवसरों पर इसका पाठ मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए अत्यंत लाभकारी है।
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