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Santoshi Mata Chalisa Lyrics

॥ दोहा ॥
श्री गणपति पद नाय सिर, धरि हिय शारदा ध्यान।
सन्तोषी मां की करुँ, कीरति सकल बखान॥

॥ चौपाई ॥
जय संतोषी मां जग जननी। खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी॥
गणपति देव तुम्हारे ताता। रिद्धि सिद्धि कहलावहं माता॥

माता-पिता की रहौ दुलारी। कीरति केहि विधि कहुं तुम्हारी॥
क्रीट मुकुट सिर अनुपम भारी। कानन कुण्डल को छवि न्यारी॥

सोहत अंग छटा छवि प्यारी। सुन्दर चीर सुनहरी धारी॥
आप चतुर्भुज सुघड़ विशाला। धारण करहु गले वन माला॥

निकट है गौ अमित दुलारी। करहु मयूर आप असवारी॥
जानत सबही आप प्रभुताई। सुर नर मुनि सब करहिं बड़ाई॥

तुम्हरे दरश करत क्षण माई। दुख दरिद्र सब जाय नसाई॥
वेद पुराण रहे यश गाई। करहु भक्त की आप सहाई॥

ब्रह्मा ढिंग सरस्वती कहाई। लक्ष्मी रूप विष्णु ढिंग आई॥
शिव ढिंग गिरजा रूप बिराजी। महिमा तीनों लोक में गाजी॥

शक्ति रूप प्रगटी जन जानी। रुद्र रूप भई मात भवानी॥
दुष्टदलन हित प्रगटी काली। जगमग ज्योति प्रचंड निराली॥

चण्ड मुण्ड महिषासुर मारे। शुम्भ निशुम्भ असुर हनि डारे॥
महिमा वेद पुरनान बरनी। निज भक्तन के संकट हरनी॥

रूप शारदा हंस मोहिनी। निरंकार साकार दाहिनी॥
प्रगटाई चहुंदिश निज माया। कण कण में है तेज समाया॥

पृथ्वी सूर्य चन्द्र अरु तारे। तव इंगित क्रम बद्ध हैं सारे॥
पालन पोषण तुमहीं करता। क्षण भंगुर में प्राण हरता॥

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं। शेष महेश सदा मन लावे॥
मनोकमना पूरण करनी। पाप काटनी भव भय तरनी॥

चित्त लगाय तुम्हें जो ध्याता। सो नर सुख सम्पत्ति है पाता॥
बन्ध्या नारि तुमहिं जो ध्यावैं। पुत्र पुष्प लता सम वह पावैं॥

पति वियोगी अति व्याकुलनारी। तुम वियोग अति व्याकुलयारी॥
कन्या जो कोइ तुमको ध्यावै। अपना मन वांछित वर पावै॥

शीलवान गुणवान हो मैया। अपने जन की नाव खिवैया॥
विधि पूर्वक व्रत जो कोई करहीं। ताहि अमित सुख संपत्ति भरहीं॥

गुड़ और चना भोग तोहि भावै। सेवा करै सो आनंद पावै॥
श्रद्धा युक्त ध्यान जो धरहीं। सो नर निश्चय भव सों तरहीं॥

उद्यापन जो करहि तुम्हारा। ताको सहज करहु निस्तारा॥
नारि सुहागिन व्रत जो करती। सुख सम्पत्ति सों गोदी भरती॥

जो सुमिरत जैसी मन भावा। सो नर वैसो ही फल पावा॥
सात शुक्र जो व्रत मन धारे। ताके पूर्ण मनोरथ सारे॥

सेवा करहि भक्ति युत जोई। ताको दूर दरिद्र दुख होई॥
जो जन शरण माता तेरी आवै। ताके क्षण में काज बनावै॥

जय जय जय अम्बे कल्यानी। कृपा करौ मोरी महारानी॥
जो कोई पढ़ै मात चालीसा। तापे करहिं कृपा जगदीशा॥

नित प्रति पाठ करै इक बारा। सो नर रहै तुम्हारा प्यारा॥
नाम लेत ब्याधा सब भागे। रोग दोष कबहूँ नहीं लागे॥

॥ दोहा ॥
सन्तोषी माँ के सदा, बन्दहुँ पग निश वास।
पूर्ण मनोरथ हों सकल, मात हरौ भव त्रास॥
|| इति संपूर्णंम् ||


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संतोषी माता चालीसा: पूजा विधि, लाभ, मंत्र, और अर्थ

संतोषी माता चालीसा देवी संतोषी को समर्पित एक भक्ति रचना है, जो उनकी दया, कृपा, और महिमा का वर्णन करती है। संतोषी माता को सुख, शांति, और संतोष की देवी माना जाता है। उनकी आराधना से जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और इच्छाओं की पूर्ति होती है। उनकी कृपा से व्यक्ति को आत्मिक शांति और भौतिक समृद्धि प्राप्त होती है।

संतोषी माता की पूजा विधि

पूजा का समय:
- शुक्रवार का दिन संतोषी माता की पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है। - प्रातः काल या सूर्यास्त के समय पूजा करना अत्यधिक फलदायी होता है। - सात शुक्रवार तक व्रत रखने की परंपरा है, जिससे माता संतोषी प्रसन्न होती हैं।

पूजा सामग्री:
- गुड़ और चना (माता को प्रिय भोग)। - सफेद वस्त्र। - अगरबत्ती, धूप, और दीप। - संतोषी माता का चित्र या मूर्ति। - मिट्टी का दीपक। - पीला और सफेद फूल।

पूजा प्रक्रिया:
1. पूजा स्थल को स्वच्छ करें और संतोषी माता का चित्र या मूर्ति स्थापित करें। 2. सफेद वस्त्र धारण करें और गुड़ और चने का भोग लगाएं। 3. दीपक जलाकर माता के समक्ष अगरबत्ती और धूप अर्पित करें। 4. "संतोषी माता चालीसा" का पाठ श्रद्धा और ध्यान से करें। 5. "ॐ संतोषी मातायै नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें। 6. सात शुक्रवार तक व्रत रखें और व्रत का उद्यापन श्रद्धा से करें। 7. अंत में, प्रसाद बांटें और माता से अपनी इच्छाओं की पूर्ति की प्रार्थना करें।

संतोषी माता चालीसा के लाभ

संतोष और शांति: संतोषी माता की कृपा से जीवन में संतोष, शांति, और स्थिरता आती है।

सुख-समृद्धि: उनकी आराधना से परिवार में सुख और समृद्धि का वास होता है।

पारिवारिक कल्याण: उनकी पूजा से पारिवारिक संबंध मजबूत होते हैं और विवाद समाप्त होते हैं।

मनोकामना पूर्ति: माता के व्रत और चालीसा का पाठ सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है।

संतान सुख: नि:संतान दंपतियों को उनकी कृपा से संतान सुख प्राप्त होता है।

रोग और कष्टों से मुक्ति: उनकी कृपा से मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक रोग समाप्त होते हैं।

नकारात्मकता का नाश: संतोषी माता की आराधना से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है।

संतोषी माता के मंत्र

बीज मंत्र:
"ॐ संतोषी मातायै नमः।"

गायत्री मंत्र:
"ॐ संतोष्यै च विद्महे, मंगलप्रदायै धीमहि। तन्नः संतोषी प्रचोदयात्।"

महामंत्र:
"ॐ ह्रीं श्रीं संतोष्यै स्वाहा।"

संतोषी स्तुति:
"ॐ संतोष्यै नमः। कृपा करुणामयी मातरम्।" यह मंत्र माता की करुणा और कृपा को प्रकट करने के लिए जपा जाता है।

संतोषी माता चालीसा का अर्थ

**दोहा का अर्थ:** - **"श्री गणपति पद नाय सिर, धरि हिय शारदा ध्यान। संतोषी मां की करुँ, कीरति सकल बखान॥"** अर्थ: मैं गणपति और मां शारदा का ध्यान करते हुए संतोषी माता की महिमा का गुणगान करता हूँ। **चौपाई का अर्थ:** मां संतोषी जगत की पालनहार और भक्तों की रक्षक हैं। वे शांति और संतोष की मूर्ति हैं। उनका स्वरूप सौम्य और आकर्षक है। माता के दर्शन से सभी दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है। वे भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। संतोषी माता का तेज और प्रभाव सभी दिशाओं में व्याप्त है। मां संतोषी की कृपा से नि:संतान दंपतियों को संतान सुख प्राप्त होता है। व्रत रखने और श्रद्धा से उनकी पूजा करने से भक्तों के जीवन में सुख-शांति का संचार होता है। माता अपने भक्तों को सभी बाधाओं से बचाती हैं और उन्हें सफलता का मार्ग दिखाती हैं। उनका ध्यान करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भवसागर से मुक्ति मिलती है। माता संतोषी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनकी इच्छाओं को पूरा करती हैं। जो भक्त निष्ठा के साथ उनकी आराधना करते हैं, उन्हें कभी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता।

निष्कर्ष

संतोषी माता चालीसा और उनकी पूजा विधि जीवन में संतोष, शांति, और सकारात्मक ऊर्जा लाती है। उनकी आराधना से सभी प्रकार की बाधाओं, कष्टों, और नकारात्मकता का नाश होता है। संतोषी माता की कृपा से व्यक्ति को न केवल भौतिक सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि आत्मिक संतोष और शांति भी मिलती है। नियमित पूजा और व्रत से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में समृद्धि का वास होता है।


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