Chander Dev Chalisa
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम।उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकर।
चन्द्रपुरी के चन्द्र को, मन मंदिर में धार।।
।। चौपाई ।।
जय-जय स्वामी श्री जिन चन्दा, तुमको निरख भये आनन्दा।
तुम ही प्रभु देवन के देवा, करूँ तुम्हारे पद की सेवा।।
वेष दिगम्बर कहलाता है, सब जग के मन भाता है।
नासा पर है द्रष्टि तुम्हारी, मोहनि मूरति कितनी प्यारी।।
तीन लोक की बातें जानो, तीन काल क्षण में पहचानो।
नाम तुम्हारा कितना प्यारा , भूत प्रेत सब करें निवारा।।
तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ, अष्टम तीर्थंकर कहलाओ।।
महासेन जो पिता तुम्हारे, लक्ष्मणा के दिल के प्यारे।।
तज वैजंत विमान सिधाये , लक्ष्मणा के उर में आये।
पोष वदी एकादश नामी , जन्म लिया चन्दा प्रभु स्वामी।।
मुनि समन्तभद्र थे स्वामी, उन्हें भस्म व्याधि बीमारी।
वैष्णव धर्म जभी अपनाया, अपने को पण्डित कहाया।।
कहा राव से बात बताऊं , महादेव को भोग खिलाऊं।
प्रतिदिन उत्तम भोजन आवे , उनको मुनि छिपाकर खावे।।
इसी तरह निज रोग भगाया , बन गई कंचन जैसी काया।
इक लड़के ने पता चलाया , फौरन राजा को बतलाया।।
तब राजा फरमाया मुनि जी को , नमस्कार करो शिवपिंडी को।
राजा से तब मुनि जी बोले, नमस्कार पिंडी नहिं झेले।।
राजा ने जंजीर मंगाई , उस शिवपिंडी में बंधवाई।
मुनि ने स्वयंभू पाठ बनाया , पिंडी फटी अचम्भा छाया।।
चन्द्रप्रभ की मूर्ति दिखाई, सब ने जय-जयकार मनाई।
नगर फिरोजाबाद कहाये , पास नगर चन्दवार बताये।।
चन्द्रसैन राजा कहलाया , उस पर दुश्मन चढ़कर आया।
राव तुम्हारी स्तुति गई , सब फौजो को मार भगाई।।
दुश्मन को मालूम हो जावे , नगर घेरने फिर आ जावे।
प्रतिमा जमना में पधराई , नगर छोड़कर परजा धाई।।
बहुत समय ही बीता है कि , एक यती को सपना दीखा।
बड़े जतन से प्रतिमा पाई , मन्दिर में लाकर पधराई।।
वैष्णवों ने चाल चलाई , प्रतिमा लक्ष्मण की बतलाई।
अब तो जैनी जन घबरावें , चन्द्र प्रभु की मूर्ति बतावें।।
चिन्ह चन्द्रमा का बतलाया , तब स्वामी तुमको था पाया।
सोनागिरि में सौ मन्दिर हैं , इक बढ़कर इक सुन्दर हैं।।
समवशरण था यहां पर आया , चन्द्र प्रभु उपदेश सुनाया।
न्द्र प्रभु का मंदिर भारी , जिसको पूजे सब नर - नारी।।
सात हाथ की मूर्ति बताई , लाल रंग प्रतिमा बतलाई।
मंदिर और बहुत बतलाये , शोभा वरणत पार न पाये।।
पार करो मेरी यह नैया , तुम बिन कोई नहीं खिवैया।
प्रभु मैं तुमसे कुछ नहीं चाहूं , भव - भव में दर्शन पाऊँ।।
मैं हूं स्वामी दास तिहारा , करो नाथ अब तो निस्तारा।
स्वामी आप दया दिखलाओ , चन्द्रदास को चन्द्र बनाओ।।
।।सोरठ।।
नित चालीसहिं बार , पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार , सोनागिर में आय के।।
होय कुबेर सामान , जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान , नाम वंश जग में चले।।
|| इति संपूर्णंम् ||
श्री चंद्रदेव चालीसा: पूजा विधि, लाभ, मंत्र, शुभ अवसर और अर्थ
श्री चंद्रदेव चालीसा भगवान चंद्रदेव को समर्पित है, जो शीतलता, मानसिक शांति और सुख-समृद्धि के देवता माने जाते हैं। चंद्रदेव का उज्जवल रूप और चंद्रमा की सौम्यता मन और आत्मा को शांत करती है। उनकी आराधना विशेष रूप से मानसिक तनाव, ग्रह दोष, और पारिवारिक अशांति को दूर करने के लिए की जाती है। इस चालीसा में उनकी महिमा, चमत्कार, और भक्तों के प्रति करुणा का वर्णन किया गया है। यह पाठ हर व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक संतुलन प्रदान करता है।
चंद्रदेव की पूजा विधि
पूजा का समय:
- चंद्रदेव की पूजा के लिए सोमवार का दिन सर्वोत्तम माना जाता है।
- पूर्णिमा की रात्रि चंद्रदेव की आराधना के लिए सबसे शुभ होती है।
- शरद पूर्णिमा के दिन उनकी पूजा से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
- चंद्रग्रहण के समय उनकी उपासना कुंडली के दोष दूर करने के लिए लाभकारी होती है।
आवश्यक सामग्री:
- चंद्रदेव की मूर्ति या यंत्र।
- सफेद वस्त्र और सफेद पुष्प।
- अक्षत (चावल), चंदन, और शुद्ध घी का दीपक।
- मिठाई और दूध का भोग।
- शुद्ध जल और तांबे का पात्र।
पूजा की विधि:
1. पूजा स्थल को स्वच्छ करें और चंद्रदेव की मूर्ति स्थापित करें।
2. शुद्ध जल और दूध से चंद्रदेव का अभिषेक करें।
3. सफेद फूल और अक्षत अर्पित करें।
4. दीपक जलाएं और चंदन का तिलक करें।
5. "श्री चंद्र चालीसा" का पाठ श्रद्धा और भक्ति के साथ करें।
6. "ॐ सोम सोमाय नमः" मंत्र का जाप 108 बार करें।
7. अंत में मिठाई और दूध का भोग लगाएं और प्रसाद बांटें।
चंद्रदेव चालीसा के लाभ
1. मानसिक शांति: चंद्रदेव की कृपा से मन को शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
2. ग्रह दोष शांति: चंद्र दोष और अशुभ प्रभावों को शांत करने में मदद मिलती है।
3. पारिवारिक सुख: चंद्रदेव की पूजा से परिवार में शांति और सद्भाव बना रहता है।
4. स्वास्थ्य लाभ: मानसिक और शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
5. आध्यात्मिक जागरूकता: उनकी आराधना आत्मा को शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है।
6. आर्थिक समृद्धि: चंद्रदेव की कृपा से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
7. शिक्षा और बुद्धि: विद्यार्थियों के लिए चंद्रदेव की आराधना अत्यधिक लाभकारी होती है।
8. तनाव मुक्ति: उनकी कृपा से जीवन के सभी तनाव समाप्त हो जाते हैं।
चंद्रदेव के मंत्र
बीज मंत्र:
"ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः।"
गायत्री मंत्र:
"ॐ शशिनाय विद्महे, अमृततत्त्वाय धीमहि। तन्नः सोमः प्रचोदयात्।"
ध्यान मंत्र:
"ॐ सोम सोमाय नमः।"
शांति मंत्र:
"ॐ चन्द्राय नमः।"
चंद्रदेव चालीसा के शुभ अवसर
1. पूर्णिमा: चंद्रदेव की आराधना के लिए यह दिन अति शुभ माना जाता है।
2. सोमवार: चंद्रदेव की पूजा के लिए सप्ताह का यह दिन उत्तम होता है।
3. शरद पूर्णिमा: इस दिन उनकी आराधना से मानसिक संतुलन और शांति प्राप्त होती है।
4. चंद्रग्रहण: ग्रहण के समय उनकी उपासना अशुभ प्रभावों को समाप्त करती है।
5. मानसिक और पारिवारिक समस्याओं के समय: चंद्रदेव की पूजा से समस्याओं का समाधान मिलता है।
चंद्रदेव चालीसा का अर्थ
**दोहा का अर्थ:**
- **"शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम। उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।"**
अर्थ: मैं अरिहंत, सिद्ध, और आचार्य को प्रणाम करता हूं, जो सुख और ज्ञान प्रदान करते हैं।
**चौपाई का अर्थ:**
चंद्रदेव के शीतल और सौम्य स्वरूप का वर्णन इस चालीसा में किया गया है। उनकी महिमा तीनों लोकों में व्याप्त है। उनकी दृष्टि से व्यक्ति के मानसिक और भौतिक कष्ट समाप्त हो जाते हैं। वे अपने भक्तों के कष्ट हरने और जीवन में सकारात्मकता लाने के लिए प्रसिद्ध हैं। चंद्रदेव की कृपा से व्यक्ति के सभी कष्ट, रोग, और बाधाएं दूर होती हैं। उनकी आराधना से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
निष्कर्ष
श्री चंद्रदेव चालीसा मानसिक शांति, संतुलन, और सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है। उनकी आराधना जीवन के सभी कष्टों को समाप्त कर आत्मिक शांति और संतोष प्रदान करती है। उनकी कृपा से व्यक्ति को मानसिक शांति, आर्थिक उन्नति, और पारिवारिक सुख प्राप्त होता है। श्रद्धा और भक्ति से चंद्रदेव की आराधना करने वाले भक्तों को जीवन में स्थायी संतुलन और आनंद प्राप्त होता है।
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