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Bhagwat Gita Chalisa

॥ चौपाई ॥
प्रथमहिं गुरुको शीश नवाऊँ।हरिचरणों में ध्यान लगाऊँ॥
गीत सुनाऊँ अद्भुत यार।धारण से हो बेड़ा पार॥

अर्जुन कहै सुनो भगवाना।
अपने रूप बताये नाना॥
उनका मैं कछु भेद न जाना।
किरपा कर फिर कहो सुजाना॥

जो कोई तुमको नित ध्यावे।
भक्तिभाव से चित्त लगावे॥
रात दिवस तुमरे गुण गावे।
तुमसे दूजा मन नहीं भावे॥

तुमरा नाम जपे दिन रात।
और करे नहीं दूजी बात॥
दूजा निराकार को ध्यावे।
अक्षर अलख अनादि बतावे॥

दोनों ध्यान लगाने वाला।
उनमें कुण उत्तम नन्दलाला॥

अर्जुन से बोले भगवान्।
सुन प्यारे कछु देकर ध्यान॥
मेरा नाम जपै जपवावे।
नेत्रों में प्रेमाश्रु छावे॥

मुझ बिनु और कछु नहीं चावे।
रात दिवस मेरा गुण गावे॥

सुनकर मेरा नामोच्चार।
उठै रोम तन बारम्बार॥

जिनका क्षण टूटै नहिं तार।
उनकी श्रद्घा अटल अपार॥

मुझ में जुड़कर ध्यान लगावे।
ध्यान समय विह्वल हो जावे॥
कंठ रुके बोला नहिं जावे।
मन बुधि मेरे माँही समावे॥

लज्जा भय रु बिसारे मान।
अपना रहे ना तन का ज्ञान॥

ऐसे जो मन ध्यान लगावे।
सो योगिन में श्रेष्ठ कहावे॥

जो कोई ध्यावे निर्गुण रूप।
पूर्ण ब्रह्म अरु अचल अनूप॥

निराकार सब वेद बतावे।
मन बुद्धी जहँ थाह न पावे॥

जिसका कबहुँ न होवे नाश।
ब्यापक सबमें ज्यों आकाश॥

अटल अनादि आनन्दघन।
जाने बिरला जोगीजन॥

ऐसा करे निरन्तर ध्यान।
सबको समझे एक समान॥

मन इन्द्रिय अपने वश राखे।
विषयन के सुख कबहुँ न चाखे॥

सब जीवों के हित में रत।
ऐसा उनका सच्चा मत॥

वह भी मेरे ही को पाते।
निश्चय परमा गति को जाते॥

फल दोनों का एक समान।
किन्तु कठिन है निर्गुण ध्यान॥

जबतक है मन में अभिमान।
तबतक होना मुश्किल ज्ञान॥

जिनका है निर्गुण में प्रेम।
उनका दुर्घट साधन नेम॥

मन टिकने को नहीं अधार।
इससे साधन कठिन अपार॥

सगुन ब्रह्म का सुगम उपाय।
सो मैं तुझको दिया बताय॥

यज्ञ दानादि कर्म अपारा।
मेरे अर्पण कर कर सारा॥

अटल लगावे मेरा ध्यान।
समझे मुझको प्राण समान॥

सब दुनिया से तोड़े प्रीत।
मुझको समझे अपना मीत॥

प्रेम मग्न हो अति अपार।
समझे यह संसार असार॥

जिसका मन नित मुझमें यार।
उनसे करता मैं अति प्यार॥

केवट बनकर नाव चलाऊँ।
भव सागर के पार लगाऊँ॥

यह है सबसे उत्तम ज्ञान।
इससे तू कर मेरा ध्यान॥

फिर होवेगा मोहिं सामान।
यह कहना मम सच्चा जान॥

जो चाले इसके अनुसार।
वह भी हो भवसागर पार॥
|| इति संपूर्णंम् ||



श्री भगवद् गीता चालीसा: पूजा विधि, लाभ, मंत्र, शुभ अवसर और अर्थ


श्री भगवद् गीता चालीसा श्रीकृष्ण के दिव्य उपदेशों और गीता के ज्ञान को भक्ति भाव से व्यक्त करती है। यह चालीसा जीवन के हर पहलू को गहराई से समझने में मदद करती है और आत्मा व परमात्मा के बीच के संबंधों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसे पढ़ने से जीवन के कठिन समय में मार्गदर्शन और मानसिक शांति मिलती है। गीता का संदेश न केवल आध्यात्मिक बल्कि भौतिक जीवन को भी संतुलित करने में सहायक है।


श्री भगवद् गीता चालीसा की पूजा विधि


पूजा का समय:
- प्रातःकाल सूर्योदय के समय पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है।
- विशेष पर्व जैसे गीता जयंती, जन्माष्टमी और एकादशी पर पाठ का महत्व बढ़ जाता है।
- संध्या समय में भी पूजा और पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

आवश्यक सामग्री:
- श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र।
- भगवद् गीता ग्रंथ।
- तुलसी के पत्ते और ताजे फूल।
- शुद्ध जल से भरा कलश।
- घी का दीपक और अगरबत्ती।
- पीले वस्त्र (पूजन के लिए विशेष)।

पूजा प्रक्रिया:
1. पूजा स्थल को साफ करें और वहां श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित करें।
2. दीपक और अगरबत्ती जलाकर पूजा शुरू करें।
3. तुलसी के पत्ते और फूल अर्पित करें।
4. "ॐ श्रीकृष्णाय नमः" मंत्र का जाप 108 बार करें।
5. श्री भगवद् गीता चालीसा का पाठ श्रद्धा और भक्ति के साथ करें।
6. अंत में भगवान की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
7. श्रीकृष्ण से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अपने कष्ट और मनोकामनाएं उनके चरणों में समर्पित करें।


श्री भगवद् गीता चालीसा के लाभ


1. आत्मा का जागरण: गीता चालीसा पढ़ने से व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध समझने में मदद मिलती है।
2. मानसिक शांति: भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से मन को स्थिरता और आंतरिक शांति प्राप्त होती है।
3. कर्तव्य और धर्म का बोध: यह पाठ व्यक्ति को अपने कर्तव्यों और धर्म का सटीक मार्गदर्शन देता है।
4. आध्यात्मिक उन्नति: गीता का ज्ञान व्यक्ति को आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर करता है।
5. जीवन के संकटों का समाधान: जीवन के कठिन समय में गीता का पाठ आत्मविश्वास और सकारात्मकता लाता है।
6. भक्ति का विस्तार: भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अटूट भक्ति विकसित होती है।
7. सुखद और समृद्ध जीवन: गीता का ज्ञान भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन स्थापित करता है।


श्री भगवद् गीता के मंत्र


ध्यान मंत्र:
"ॐ पार्थाय प्रतिबोधितां भगवता नारायणेन स्वयं।
व्यासेन ग्रथितां पुराणमुनिना मध्ये महाभारतम्॥"

गायत्री मंत्र:
"ॐ वासुदेवाय विद्महे, महात्मने धीमहि।
तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥"

शांति मंत्र:
"ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः।"

विशेष मंत्र:
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।"


श्री भगवद् गीता चालीसा के शुभ अवसर


1. गीता जयंती: गीता जयंती पर श्रीकृष्ण की आराधना और चालीसा का पाठ विशेष पुण्यदायी है।
2. जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस पर यह पाठ मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।
3. एकादशी: एकादशी के दिन चालीसा का पाठ करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
4. नियमित साधना: प्रतिदिन पाठ करने से आत्मिक शुद्धि और मानसिक स्थिरता मिलती है।


श्री भगवद् गीता चालीसा का अर्थ


श्री भगवद् गीता चालीसा में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद का सार है। अर्जुन, जो युद्धभूमि में धर्मसंकट में थे, भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवन, धर्म, कर्तव्य और मोक्ष के गहन ज्ञान से अवगत कराया। यह चालीसा भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति और आत्मा की दिव्यता पर आधारित है। चालीसा बताती है कि भक्तिभाव और विश्वास के साथ भगवान को समर्पण करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं। गीता चालीसा व्यक्ति को यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और सत्कर्म से परमात्मा का सानिध्य प्राप्त किया जा सकता है। यह जीवन के हर क्षण में सकारात्मकता और आत्मविश्वास का संचार करती है।


निष्कर्ष

श्री भगवद् गीता चालीसा जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन का स्त्रोत है। यह चालीसा आत्मा को परमात्मा से जोड़ने और भक्ति के मार्ग पर चलने का प्रेरणा देती है। इसका नियमित पाठ व्यक्ति को जीवन के हर संघर्ष से बाहर निकालने में मदद करता है। भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों पर आधारित यह चालीसा व्यक्ति को आत्मज्ञान, भक्ति, और मोक्ष का मार्ग दिखाती है। यह न केवल आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ाती है, बल्कि जीवन में संतुलन और स्थिरता भी लाती है।





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