भगवान विनायक की प्रसिद्ध कथा: गणेश और चंद्रमा का श्राप
भगवान गणेश, जिन्हें विनायक के नाम से भी जाना जाता है, विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य देवता माने जाते हैं।
उनकी कई कथाएं भारतीय धर्म और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
यहां प्रस्तुत है भगवान गणेश की एक प्रसिद्ध कथा, जो चंद्रमा से जुड़े श्राप और उसके प्रभावों पर आधारित है।
गणेश चतुर्थी की कथा: चंद्रमा का श्राप
एक बार की बात है, भगवान गणेश ने खूब स्वादिष्ट भोजन किया और एक बड़े पेट के साथ अपने वाहन मूषक (चूहे) पर सवार होकर कहीं जा रहे थे।उसी समय, आकाश में पूर्णिमा का चंद्रमा अपनी पूरी चमक के साथ प्रकाशमान हो रहा था।
चंद्रमा ने भगवान गणेश को इतने बड़े पेट के साथ मूषक पर सवार देखकर हंस दिया।
चंद्रमा का यह उपहास भगवान गणेश को बहुत बुरा लगा।
गणेश का श्राप
भगवान गणेश को गुस्सा आ गया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दिया:"हे चंद्रमा! तुमने मुझ पर हंसने का अपराध किया है।
अब से, तुम्हारा प्रकाश लुप्त हो जाएगा, और जो भी तुम्हारा दर्शन करेगा, उसे कलंक लगेगा।"
चंद्रमा को भगवान गणेश के श्राप का भयानक प्रभाव समझ में आया और वह बहुत दुखी हो गया।
वह तुरंत भगवान गणेश से क्षमा मांगने लगा और विनती करने लगा कि उसे श्राप से मुक्त कर दें।
उसकी विनम्र प्रार्थना को सुनकर भगवान गणेश का हृदय पिघल गया, लेकिन उन्होंने अपने श्राप को पूरी तरह समाप्त करने की बजाय, इसे आंशिक रूप से कम कर दिया।
उन्होंने कहा:
"तुम्हारा श्राप पूरी तरह समाप्त नहीं होगा, परंतु अब से हर मास की चतुर्थी तिथि को तुम्हारा दर्शन करना अशुभ माना जाएगा।
इस दिन अगर कोई व्यक्ति तुम्हारा दर्शन करेगा, तो उसे दोष लगेगा, जिसे मोदक या गणेश चतुर्थी के व्रत से समाप्त किया जा सकता है।"
श्राप का प्रभाव और गणेश चतुर्थी का महत्व
भगवान गणेश के इस श्राप के कारण, यह मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए।ऐसा करने पर व्यक्ति पर किसी न किसी प्रकार का दोष लगता है, जिसे 'मिथ्या कलंक' कहा जाता है।
इस दोष से मुक्ति पाने के लिए गणेश जी की पूजा की जाती है और उनके लिए मोदक का भोग लगाया जाता है।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि किसी का उपहास करना या उसे नीचा दिखाने का प्रयास करना हमेशा गलत होता है, चाहे वह किसी भी स्थिति में क्यों न हो।
चंद्रमा को भगवान गणेश का श्राप इसी बात का प्रमाण है।
भगवान गणेश और चंद्रमा के संबंध की महिमा
यह कथा भगवान गणेश की महिमा और उनके स्वभाव को दर्शाती है कि वह भक्तों पर कृपा करते हैं, लेकिन उन्हें सतर्क रहने की भी सीख देते हैं।भगवान गणेश सभी प्रकार के विघ्नों को हरने वाले और प्रथम पूज्य देवता हैं।
इसलिए, उनकी पूजा करने से जीवन के सारे संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष भगवान गणेश की यह कथा हमें सिखाती है कि हमें कभी किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए और जीवन में सभी के प्रति सद्भावना रखनी चाहिए।
गणेश जी की कृपा से जीवन में आने वाली हर विघ्न और कठिनाई का अंत होता है।
यही कारण है कि हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी की पूजा से की जाती है।
यह कथा भगवान गणेश की महानता और उनके दया भाव का प्रतीक है, जिससे हमें सच्ची श्रद्धा और निष्ठा का मार्ग मिलता है।
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