Shri Satyanarayana Arti Lyrics
जय लक्ष्मीरमणाश्री जय लक्ष्मीरमणा|
जय लक्ष्मीरमणा|
रत्नजड़ित सिंहासन अद्भुत छवि राजे।
नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजे।
जय लक्ष्मीरमणा|...2
प्रगट भये कलि कारण द्विज को दर्श दियो।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर कंचन महल कियो।
जय लक्ष्मीरमणा|...2
दुर्बल भील कठारो इन पर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा जिनकी विपति हरी।
जय लक्ष्मीरमणा|...2
वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीनी।
सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर स्तुति कीनी।
जय लक्ष्मीरमणा|...2
भाव भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धर्यो।
श्रद्धा धारण कीनी तिनको काज सर्यो।
जय लक्ष्मीरमणा|...2
ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीनो दीनदयाल हरी।
जय लक्ष्मीरमणा|...2
चढ़त प्रसाद सवाया कदली फल मेवा।
धूप दीप तुलसी से राजी सत्यदेवा।
जय लक्ष्मीरमणा|...2
श्री सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे।
जय लक्ष्मीरमणा|...2
|| इति संपूर्णंम् ||
श्री सत्यनारायण जी की आरती का महत्व
श्री सत्यनारायण जी की आरती का सारांश, प्रभाव और आध्यात्मिक लाभ
आरती का सारांश:श्री सत्यनारायण जी की आरती भक्तों की श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त करने के लिए गाई जाती है। यहाँ पर दी गई आरती में भगवान सत्यनारायण के गुण और उनके भक्तों पर उनके कृपा की विशेषताओं का वर्णन किया गया है:
आरती का प्रारंभ
"जय लक्ष्मीरमणा श्री जय लक्ष्मीरमणा।" - आरती भगवान सत्यनारायण की प्रशंसा से शुरू होती है, जिनका दूसरा नाम लक्ष्मीपति है।
सत्यनारायण का स्वरूप
"सत्यनारायण स्वामी जनपातक हरणा।" - भगवान सत्यनारायण जनपातकों और पापों को नष्ट करने वाले हैं।
"रत्नजड़ित सिंहासन अद्भुत छवि राजे। नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजे।" - भगवान सत्यनारायण रत्नों से जड़े सिंहासन पर विराजमान हैं और नारद मुनि उनके दर्शन कर घंटा बजाते हैं।
सत्यनारायण का प्रकट होना
"प्रगट भये कलि कारण द्विज को दर्श दियो। बूढ़ो ब्राह्मण बनकर कंचन महल कियो।" - सत्यनारायण जी ने कलियुग में एक ब्राह्मण के रूप में प्रकट होकर कंचन महल का निर्माण किया।
भक्तों पर कृपा
"दुर्बल भील कठारो इन पर कृपा करी। चन्द्रचूड़ एक राजा जिनकी विपति हरी।" - भगवान ने एक कमजोर भील पर कृपा की और चंद्रचूड़ नामक राजा की विपत्तियों को दूर किया।
वैश्य और अन्य भक्तों की भक्ति
"वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीनी। सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर स्तुति कीनी।" - वैश्य ने श्रद्धा से भगवान सत्यनारायण की पूजा की और अपने मनोरथ प्राप्त किए, फिर भगवान की स्तुति की।
भक्ति के रूप
"भाव भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धर्यो। श्रद्धा धारण कीनी तिनको काज सर्यो।" - भगवान ने भक्ति और श्रद्धा के कारण विभिन्न रूप धारण किए और भक्तों की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया।
ग्वाल-बाल और राजा की भक्ति
"ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति करी। मनवांछित फल दीनो दीनदयाल हरी।" - ग्वाल-बालों और राजा ने वन में भक्ति की और भगवान ने उन्हें मनवांछित फल दिया।
प्रसाद और पूजा
"चढ़त प्रसाद सवाया कदली फल मेवा। धूप दीप तुलसी से राजी सत्यदेवा।" - भगवान को प्रसाद अर्पित किया जाता है, जिसमें केले, फल, मेवा शामिल हैं। भगवान सत्यनारायण धूप, दीप और तुलसी से प्रसन्न होते हैं।
आरती का महत्व
"श्री सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे।" - जो व्यक्ति इस आरती को गाता है, वह अपनी इच्छाओं को पूरा करता है और सुख-समृद्धि प्राप्त करता है।
श्री सत्यनारायण जी की आरती का प्रभाव
पापों का नाश
आरती से भगवान सत्यनारायण की कृपा प्राप्त होती है, जो पापों को समाप्त करती है और जीवन में पवित्रता लाती है।
सुख और समृद्धि
भगवान सत्यनारायण की आरती से भक्तों को सुख, समृद्धि और मनचाही इच्छाओं की पूर्ति होती है। यह आरती उन्हें मानसिक और भौतिक समृद्धि प्रदान करती है।
धार्मिक शांति
इस आरती के माध्यम से भक्तों को धार्मिक शांति और संतोष मिलता है। यह आरती जीवन की कठिनाइयों और समस्याओं से उबारने में मदद करती है।
श्री सत्यनारायण जी की आरती का आध्यात्मिक लाभ:
आध्यात्मिक उन्नतिआरती का नियमित पाठ करने से भक्तों की आध्यात्मिक उन्नति होती है। भगवान सत्यनारायण की पूजा और भक्ति से भक्त की श्रद्धा और समर्पण बढ़ता है।
मन की शांति
आरती का पाठ मानसिक शांति और संतोष प्रदान करता है। भक्तों को आंतरिक शांति का अनुभव होता है और जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
आशीर्वाद की प्राप्ति
भगवान सत्यनारायण की आरती से भक्तों को भगवान के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, जो जीवन में सभी बाधाओं और विघ्नों को दूर करती है।
सारांश में:
श्री सत्यनारायण जी की आरती भगवान सत्यनारायण की महिमा का वर्णन करती है, उनके गुणों की स्तुति करती है, और भक्तों को पापों से मुक्ति और समृद्धि प्राप्त करने की प्रार्थना करती है। यह आरती मानसिक शांति, सुख, और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है।
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